भारत में दिव्यांग (विकलांग) व्यक्तियों को समाज में आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि, उन्हें अभी भी कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
1. दिव्यांगों की प्रमुख समस्याएं:
(क) शिक्षा और प्रशिक्षण से जुड़ी समस्याएं
दिव्यांगों के लिए समुचित शिक्षण संस्थानों की कमी
स्कूलों और कॉलेजों में सुविधाओं की अनुपलब्धता (रैंप, ब्रेल किताबें, ऑडियो सामग्री आदि)
शिक्षक प्रशिक्षित नहीं होते जिससे दिव्यांग बच्चों को विशेष ध्यान नहीं मिल पाता
डिजिटल शिक्षा में दिव्यांगों की पहुंच सीमित
(ख) रोजगार से जुड़ी समस्याएं
नौकरी के अवसरों की कमी और भेदभाव
निजी क्षेत्र में दिव्यांगों को रोजगार देने की अनिच्छा
कौशल विकास की सुविधाओं की कमी
स्वरोजगार के लिए वित्तीय सहायता की कमी
(ग) स्वास्थ्य और पुनर्वास से जुड़ी समस्याएं
विशेष चिकित्सा सुविधाओं की कमी
दिव्यांग सहायता उपकरण (व्हीलचेयर, श्रवण यंत्र, ब्रेल लिपि) की उच्च लागत
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता
पुनर्वास और मनोवैज्ञानिक सहायता की कमी
(घ) सार्वजनिक परिवहन और बुनियादी ढांचे से जुड़ी समस्याएं
सार्वजनिक परिवहन में दिव्यांगों के लिए विशेष सुविधाओं की अनुपस्थिति
सड़कों, फुटपाथों और सरकारी भवनों में रैंप, लिफ्ट आदि की कमी
दिव्यांग व्यक्तियों के लिए टॉयलेट और अन्य सुविधाओं का अभाव
(ङ) सामाजिक भेदभाव और जागरूकता की कमी
दिव्यांगों को समाज में कमतर समझा जाना
सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर भेदभाव
विवाह और अन्य सामाजिक संस्थाओं में भागीदारी की कठिनाइयाँ
सरकारी योजनाओं की जानकारी का अभाव
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2. दिव्यांगों के लिए सरकार की प्रमुख नीतियाँ और योजनाएँ
भारत सरकार ने दिव्यांगों के उत्थान के लिए कई महत्वपूर्ण नीतियाँ और योजनाएँ लागू की हैं।
(क) शिक्षा और कौशल विकास योजनाएँ
1. समावेशी शिक्षा (Inclusive Education):
दिव्यांग छात्रों के लिए स्कूलों में विशेष सुविधाएं बढ़ाने की योजना
विशेष शिक्षकों की नियुक्ति
ब्रेल लिपि और श्रवण यंत्रों की मुफ्त आपूर्ति
2. राष्ट्रीय विकलांग वित्त एवं विकास निगम (National Handicapped Finance and Development Corporation – NHFDC):
दिव्यांगों को व्यावसायिक शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण के लिए ऋण व अनुदान दिया जाता है।
3. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY):
दिव्यांग युवाओं को विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना।
(ख) रोजगार और आर्थिक सहायता योजनाएँ
1. आरक्षण नीति:
सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में दिव्यांग व्यक्तियों को 4% आरक्षण दिया जाता है।
निजी क्षेत्र को भी दिव्यांगों को रोजगार देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
2. स्वरोजगार योजना:
दिव्यांगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लोन व अनुदान प्रदान किया जाता है।
स्टार्टअप और छोटे व्यवसायों को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं चलाई जाती हैं।
3. दिव्यांग पेंशन योजना:
गरीबी रेखा से नीचे (BPL) रहने वाले दिव्यांगों को आर्थिक सहायता के रूप में मासिक पेंशन दी जाती है।
(ग) स्वास्थ्य और पुनर्वास योजनाएँ
1. सुगम्य भारत अभियान (Accessible India Campaign):
दिव्यांगों के लिए सरकारी और सार्वजनिक भवनों को सुगम्य (एक्सेसिबल) बनाने की योजना।
परिवहन सेवाओं में सुधार लाने का प्रयास।
2. असमर्थ योजना:
दिव्यांगों को मुफ्त में कृत्रिम अंग, व्हीलचेयर, श्रवण यंत्र और अन्य उपकरण उपलब्ध कराना।
3. राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RSBY):
गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले दिव्यांगों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा।
(घ) सामाजिक सुरक्षा और अधिकार संरक्षण
1. दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016):
दिव्यांगों को कानूनी अधिकार और सुरक्षा प्रदान करने वाला कानून।
दिव्यांगों की परिभाषा में वृद्धि (पहले 7 प्रकार के विकलांगता, अब 21 प्रकार की विकलांगता शामिल)।
2. सुगम्य भारत ऐप:
दिव्यांगजन इस ऐप के माध्यम से किसी भी सार्वजनिक स्थान पर सुविधाओं की कमी की शिकायत कर सकते हैं।
3. राष्ट्रीय दिव्यांगजन नीति (National Policy for Persons with Disabilities):
दिव्यांगों के समग्र विकास के लिए सरकार की एक व्यापक नीति।
(ङ) यातायात और बुनियादी ढांचे में सुधार
1. दिव्यांगजन को रेलवे और बसों में छूट:
भारतीय रेलवे में दिव्यांगों को टिकट पर रियायत और विशेष कोच उपलब्ध कराए जाते हैं।
बसों में यात्रा करने के लिए भी कुछ राज्यों में मुफ्त या रियायती सुविधा दी जाती है।
2. विशेष स्मार्ट सिटी परियोजनाएँ:
स्मार्ट सिटीज़ में दिव्यांगों के अनुकूल इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने का लक्ष्य।
सार्वजनिक स्थानों को दिव्यांगों के अनुकूल बनाने के लिए विशेष दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।
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निष्कर्ष
हालांकि सरकार ने दिव्यांगजनों के लिए कई योजनाएँ चलाई हैं, लेकिन उनका सही क्रियान्वयन बहुत जरूरी है। इसके लिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना होगा। साथ ही, समाज को भी दिव्यांगजनों को समान अवसर और सम्मान देने के लिए मानसिकता बदलनी होगी। जागरूकता और सहभागिता से ही दिव्यांगजनों को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाया जा सकता है।
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